कल्युग एक सच्चाई है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। महासिद्धा इशपुत्र इस विषय पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि, कल्युग स्वयं ब्रह्मा से उत्पन्न एक अति तामसी स्वरूप, ब्रह्म राक्षस का अवतार ही है। यह समय धारा मे एक युग ज़रूर है परंतु इस समय मे ब्रह्म राक्षस का घनघोर तामस पूर्ण रूप से सक्रिय है। हर तरफ़ देखें तो भ्रष्टाचार , गंदी राजनीति, अनेकों षड्यंत्र, विभिन्न प्रकर की विषैली वासनाओं से प्रेरित अपराध रोज़ सुनने को मिलते हैं। ऐसे तामस, ऐसे अंधकार मे हम तुम जो इसे समझने की क्षमता रखते हैं, अगर एक मुक़दर्शक की भाँति इसे नकारते रहे और बस अपने इंद्रिय सुख के लिए साधन जुटाने में ही व्यस्त रहे, तो एक उज्ज्वल भविष्य की कमना करना बहुत ही कठिन सा नज़र आता है। क्या सम्पूर्ण विश्व मे ऐसी समझ रखने वालों की संख्या इतनी भी नहीं की हम संगठित हो अपनी आने वली पीढ़ियों के लिए एक मज़बूत आवाज़ उठा सकें? क्या हम इतने लोभी हो गए हैं की अपने स्वार्थ से ऊपर सोचना हमारे लिए असम्भव सा नज़र आता है । नाम कमाना, धन कमाना, अपने ऐशो आराम, वासनाओं को शांत करना ही मानो हमारा परम धर्म बन गया है।यह सब करना ग़लत नहीं, परंतु भौतिकवाद की इस अंधी दौड़ में अपने जीवन के परम उद्देश्य से परे हो जाना कहीं ना कहीं अधर्म ही तो है। क्या यही नहीं कल्युग का प्रकोप? क्या यही नहीं वह राक्षस जो हमारे अज्ञानता को अपनी पृष्ठ भूमि बना कर, हम सभी के भीतर सदैव सक्रिय रहता है और हमें और हमारे जीवन को अध्यात्म रूपी जागरूकता से परे रखता है।क्या यही मूल कारण नहीं, कि मनुष्य सभी वासनाओं और आकांक्षाओं को पूर्ण करने के बाद भी निराश ही रहता है और जीवन के आख़िरी क्षणों मे ही ईश्वर को याद करता है, जब वह इस संसार में कोई प्रभावशाली योगदान देने का सामर्थ्य खो चुका होता है। मनुष्य बिना अध्यात्म और गुरु के कभी यह नहीं जान सकेगा कि उसका परम उद्देश्य तो सैदैव ही इन सभी आकांक्षाओं से परे था और उसने यह जीवन व्यर्थ ही गवां दिया। जो आनंद वह इन इच्छाओं को पूर्ण कर के लेना चाहता था, वह तो उनसे मिलना कभी सम्भव ही नहीं था। इंद्रिय सुख और अनन्द के भेद को सही से ना समझ पाना एक अज्ञान ही तो है। और कहीं ना कहीं इसी अज्ञान मे हम इतने पाप कर बैठता है, कि फिर लौटना असम्भव सा हो जाता है।
इशपुत्र कहते हैं कि हम सभी को अपने जीवन में समय रहते अध्यात्म जगत को अपनाना अति आवश्यक है। कल्युग को भली भाँति समझ कर, इस अंधकार को जड़ से मिटाना तभी सम्भव होगा । इस घनघोर कल्युग में, ज्ञान ही हमारा एक मात्रा अस्त्र है। एक ज्ञानी पुरुष के आगे कल्युग निष्क्रिय हो जता है। तामस के विषैले प्रभावों और षड्यंत्रों को समझने के लिए हमें अपने मानस पटल के सो रहे तन्तुओं को ज्ञान रूपी अग्नि से प्रज्वलित करना होगा । यही है अधर्म को नष्ट कर, धर्म को पुनः स्थापित करने की पुकार। यही है एक नवयुग के निर्माण और एक ज्ञान रूपी क्रांति की सही पहचान।
ॐ सम सिद्धाए नमः ।।
ॐ श्री पद्मप्रिया रमापती इशपुत्राए नमः ।।
ॐ नमः शिवाय।।